Home / Culture / Chhath Puja: माता सीता, सूर्यपुत्र कर्ण, द्रोपदी ने क्यों किया था छठ पूजा व्रत

Chhath Puja: माता सीता, सूर्यपुत्र कर्ण, द्रोपदी ने क्यों किया था छठ पूजा व्रत

Chhathi maiya puja: हमारे ऋषियों ने इस पर्व की परम्परा के माध्यम से सूर्यदेव का नमन करने का एक अवसर दिया है, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को. छठ पर्व के माध्यम से हमें सूर्यदेव के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का अवसर मिलता है. 

Surya chhath puja: संसार को अपने प्रकाश से आलोकित करने और लोगों को ऊर्जा और जीवन देने वाले सूर्यदेव की आराधना का पर्व छठ पूजा वास्तव में सूर्यदेव को थैंक्स कहने के लिए ही है. जनमानस डूबते और उगते सूरज को धन्यवाद ज्ञापित करता है. धन्यवाद देना भी चाहिए, प्रसिद्ध कवि श्याम नारायण पांडेय ने अपनी कविता मे लिखा, “अंधकार दूर था झांक रहा सूर था, कमल डोलने लगे कोप खोलने लगे, लाल गगन हो गया मुर्ग मगन हो गया, रात की सभा उठी मुस्करा प्रभा उठी..”  इस कविता में भी कवि ने सूर्य के महत्व को बताते हुए प्रकृति का वर्णन किया है. हमारे ऋषियों ने इस पर्व की परम्परा के माध्यम से सूर्यदेव का नमन करने का एक अवसर दिया है, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को. छठ पर्व के माध्यम से हमें सूर्यदेव के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का अवसर मिलता है, अर्घ्य के माध्यम से धन्यवाद देने के साथ ही हम उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

प्रणाम करके भी कर सकते हैं आराधना: छठ पर्व पर सूर्य की उपासना होती है. वस्तुतः सूर्य का स्वरूप एक लोकतांत्रिक स्वरूप है. सबके लिए ऊर्जा और ऊष्मा देने वाले सूर्यदेव का साधु स्वभाव हमारे जीवन के लिए प्रेरक है. ऐसा करने में वह किसी के साथ भेद नहीं करते हैं तभी तो आंचलिक क्षेत्रों में “सुरुज सुरुज घाम करा, लइका सलाम करा” कहकर सर्दी के मौसम में लोग सुबह की धूप में बैठते हैं और ऊष्मा तथा ऊर्जा ग्रहण करते हैं. सूर्य की किरणों से लोगों को विटामिन डी की प्राप्ति होती है, विटामिन डी की कमी से शरीर में कई रोग पैदा होते हैं और इसीलिए डॉक्टर भी लोगों से सुबह की धूप लेने का आग्रह करते हैं. इसी लिए सूर्य जितना शास्त्रों में पूज्य हैं, उतना ही जनजीवन में भी.

जानिए क्यों मनाया जाता है छठ, क्या है इसका पौराणिक महत्व

छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिन तक चलता है। नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है, जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को ‘चैती छठ’ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को ‘कार्तिकी छठ’ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है। इसका एक अलग ऐतिहासिक महत्व भी है।
माता सीता ने भी की थी सूर्यदेव की पूजा
छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई, इस संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। इससे सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
महाभारत काल से हुई थी छठ पर्व की शुरुआत
हिंदू मान्यता के मुताबिक, कथा प्रचलित है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।

द्रोपदी में भी रखा था छठ व्रत
छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस किवदंती के मुताबिक, जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।

क्या है छठ का पौराणिक महत्व
इन कथाओं के अलावा एक और किवदंती भी प्रचलित है। पुराणों के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई संतान नहीं थी। इसके लिए उसने हर जतन कर कर डाले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब उस राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उसे पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया। यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मरा पैदा हुआ। राजा के मृत बच्चे की सूचना से पूरे नगर में शोक छा गया। कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा। इसमें बैठी देवी ने कहा, ‘मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।’ इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी।
Tagged:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *